Tuesday, December 27, 2011

“नन्हीं सी आशा.”


बिटिया मेरे जीवन की नन्हीं – सी आशा
वात्सल्य - गोरस  में  डूबा हुआ  बताशा.

तुतली बोली , डगमग चलना और शरारत
नया -नया नित दिखलाती है खेल-तमाशा.

पल में रूठे – माने, पल में रोये – हँस दे
बिटिया का गुस्सा है ,रत्ती- तोला- माशा.

दिनभर दफ्तर में थककर जब घर मैं आऊँ
देख मुझे  मुस्काकर  कर दे  दूर हताशा.

सुख -दु:ख दोनों धूप -छाँव से आते –जाते
ठहर न पाई इस आंगन में कभी निराशा.

जिस घर भी ले जन्म स्वर्ग-सा उसे सजा दे
अपने  हाथों  ब्रम्हा जी ने  इसे  तराशा.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )