Saturday, August 27, 2011

जाने चले जाते हैं कहाँ.......भाग .2


        (पार्श्व गायक मुकेश की पुण्य तिथि पर......श्रीमती सपना निगम की कलम से)

    दिल जलता है तो जलने दे – इस गीत को सहगल साहब सुनकर चकित रह गये थे कि उन्होंने यह गीत कब गाया है. जब उन्हें पता चला कि इसे मुकेश ने गया है तो उन्होंने आशीर्वाद दिया कि मुकेश ही मेरा उत्तराधिकारी होगा. इसी दौरान नौशाद साहब के संगीत निर्देशन में मेला और अंदाज फिल्म में मुकेश जी के गीतों ने देश में धूम मचा दी. फिल्म इंडस्ट्री के दो महान सितारों राज कपूर और मुकेश का पावन संगम रंजीत स्टुडियो में जयंत देसाई की फिल्म बंसरी के सेट पर हुआ. मुकेश वहाँ प्यानो बजाते हुये गा रहे थे. इस मुलाकात ने क्या रंग दिखाया, इसे लिखने की जरूरत ही नहीं है. 1949 में रिलीज राज साहब की सुपर-हिट बरसात की सफलता में फिल्म के गीतों का अहम रोल था. छोड़ गये बालम हाय  अकेला छोड़ गये गीत में मुकेश से सहगल शैली तज कर अपनी  मौलिक आवाज में गीत गाया. वैसे मुकेश को मुकेश की आवाज में प्रस्तुत करने के दावे और भी संगीतकारों ने किये हैं.  

इसी दौर की फिल्मों में आग, आवारा के गीतों ने धूम मचा दी. आवारा की कामयाबी के बाद एक बार मुकेश ने फिर से अभिनय में किस्मत आजमाने की कोशिश की .माशूका और अनुराग में फिर से वे नायक बने मगर एक बार फिर ये फिल्में फ्लॉप रहीं. अब मुकेश ने अभिनय से तौबा कर ली और पूरा ध्यान गायिकी पर केंद्रित कर दिया.1951 में मुकेश ने फिल्म मल्हार में संगीत भी दिया. बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम, कहाँ हो तुम जरा आवाज दो गीत लोगों की जुबाँ पर चढ़ गये. आग , आवारा , बरसात के बाद मुकेश अंत तक राज कपूर की आवाज बने रहे. आह, अनाड़ी, दिल ही तो है , दुल्हा-दुल्हन, संगम ,नजराना, सुनहरे दिन ,बावरे नैन, श्री 420 ,परवरिश , तीसरी कसम , जिस देश में गंगा बहती है, दीवाना , एराउंड दी वर्ल्ड , आशिक, धरम-करम , मेरा नाम जोकर , सत्यम शिवम सुंदरम आदि  फिल्मों में मुकेश की आवाज पर्दे पर राज कपूर की आवाज बनी रही. 

मुकेश को चार बार फिल्म फेयर अवार्ड मिला. ये गीत थे सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी (अनाड़ी -1959) सबसे बड़ा नादान वही है (पहचान-1970) जै बोलो बेईमान की ( बेईमान-1972) और कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है (कभी-कभी -1976) फिल्म रजनीगंधा के गीत कई बार यूँ ही देखा है के लिये वर्ष 1974 में मुकेश को सर्व श्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. जीवन के अंतिम दिनों में मुकेश ने रामायण को अपनी आवाज में रिकार्ड कराया. 27 अगस्त 1976 को मात्र 53 वर्ष की आयु में मुकेश इस दुनिया को बिदा कर गये. उनके निधन पर राज कपूर  ने कहा था - मेरी आवाज और आत्मा दोनों चली गई.

                        बड़े शौक से सुन रहा था जमाना
                        हमीं सो गये दास्ताँ कहते- कहते.

8 comments:

  1. मुकेश की आवाज अपने भावों से मिलती जुलती लगती है।

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  2. मुकेश जी को नमन. मुझे तो उनके सभी गाने अच्छे लगते हैं. और रोमांटिक मूड के तो और भी बढ़िया. इतनी मीठी आवाज. राम-चरित मानस के सभी भागों को मैंने डिजिटिलाइज कर लिया है..

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  3. वो तेरे प्यार का गम
    इक बहाना था सनम ....
    मुकेश जी को ..विन्रम श्रर्दांजन्लि...

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  4. अरुण जी ,
    आपकी पोस्ट के माध्यम से अपने सबसे प्रिय गायक को श्रद्धांजलि अर्पित कर रही हूँ। मुकेश जी की आवाज़ में जो कशिश है वो किसी अन्य आवाज़ में नहीं है। इस पोस्ट के लिए आपका विशेष आभार।

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  5. जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
    दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
    ईद मुबारक

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  6. मुकेश जी को मेरी भी श्रद्धांजलि ...

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  7. मुकेश जी को मेरी भी श्रद्धांजलि

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  8. बहुत अच्छा संस्मरण लिखा है,
    " बड़े शौक से सुन रहा था जमाना
    हमीं सो गये दास्ताँ कहते- कहते"

    में "हमी" की जगह "तुम्ही" कर दीजिये।
    "तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते ।"

    www.navgeet.blogspot.com

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