(40 पंक्तियों में भाव-सुमन)
ग्यारह दिन “गणपति” “गणराजा”
आकर मोरी कुटिया विराजा.
सुबह – साँझ नित आरती पूजा
“गणपति” सम कोई देव न दूजा.
तन, मन,धन से सेवा भक्ति
जिसने भी की पाई शक्ति.
मस्तक बड़ा – बुद्धि परिचायक
मुख-मुद्रा अति आनंददायक .
बड़े कान हैं सुनते सबकी
दु:ख – पीड़ाएँ हरते सबकी.
“मोदक प्रिय” का उदर विशाला
कहे - सभी की बातें पचा जा.
सूँड़ कहे - नाक रखो ऊँची
मान करेगी सृष्टि समूची.
“वक्रतुंड”, सिंह-वाहन धारे
ईर्ष्या-जलन,मत्सरासुर मारे.
परशुराम जी से युद्ध में टूटा
एक दाँत का साथ था छूटा.
“एकदंत” तब ही से कहाये
नशारूपी मदासुर को मिटाये.
बड़े पेट वाले हे ! “महोदर”
मोहासुर राक्षस का किया क्षर.
गज- सा मुख “गजानन” कहाये
लोभासुर को आप मिटाये.
लम्बा पेट ”लम्बोदर” न्यारे
राक्षस क्रोधासुर संहारे.
“विकट” रूप मयूर पर बैठे
कामासुर का अंत कर बैठे.
“विघ् न राज” जी विघन विनाशे
शेषनाग वाहन पर विराजे.
“धूम्रवर्ण” मूषक पर प्यारे
अभिमानासुर को संहारे.
ज्ञान – बुद्धि अउ आनंददायक
जय जय जय हो “अष्ट विनायक”.
आज विसर्जन की घड़ी आई.
हुआ हवन अब झाँकी सजाई.
मूरत जाये ,प्रभु नहीं जाना
तुम भक्तों के हृदय समाना.
बहुत जरूरी अगर है जाना
अगले बरस प्रभु जल्दी आना.
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
प्रस्तुतकर्ता -
श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़.
बेहद खूबसूरत भजन ,आभार ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... गणेश चालीसा में सारी बात समेट ली हैं ... भक्ति भाव से परिपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteमूरत जाये ,प्रभु नहीं जाना
ReplyDeleteतुम भक्तों के हृदय समाना.... yahi hai hriday kee bhawna - sundar
जय गणेश देवा।
ReplyDeleteलोगबाग काम होते ही लापरवाही से पानी के बाहर ही फ़ेंक आते है।
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