सृष्टि ही जब नष्ट होगी
सृजन की फिर कल्पना क्या ?
पूरने वाली न हो तो
द्वार पर फिर अल्पना क्या ?
लक्ष्मी जब ना रही
कैसे मनाओगे दीवाली ?
सोचिये बिन अन्नपूर्णा
सज सकेगी कैसे थाली ?
ना रही देवी अगर तो
देवता की अर्चना क्या ?
सृष्टि ही जब नष्ट होगी
सृजन की फिर कल्पना क्या ?
पुत्र ही बस पुत्र होंगे
पुत्र –वधु आयेगी कैसे ?
वंश-वृद्धि की लता
आंगन में लहरायेगी कैसे ?
जब नहीं किलकारियाँ फिर
हर्ष क्या और वेदना क्या ?
सृष्टि ही जब नष्ट होगी
सृजन की फिर कल्पना क्या ?
तुम यदि बेटे औ बेटी में
जरा भी फर्क दोगे
पूर्वजों के पास जब
जाओगे तो क्या तर्क दोगे ?
छोड़ दो संहार , समझो
बेटियों बिन सर्जना क्या ?
सृष्टि ही जब नष्ट होगी
सृजन की फिर कल्पना क्या ?
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
प्रस्तुतकर्ता -
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
प्रस्तुतकर्ता -
श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़.
सार्थक सन्देश देती बहुत सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteकुछ ऐसे ही भाव यहाँ भी हैं ---
रचयिता सृष्टि की
सार्थक और सामयिक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर संदेश देती सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteज्ञान का विस्तार।
ReplyDeleteआज 19- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
बहुत सही चिंतन किया है आपने काव्य के माध्यम से। लोग कुछ तो सीख लें, जो इस कुकर्म को अपना कर कन्या-भ्रूण हत्या कर रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता. सुंदर प्रस्तुतिकरण . बधाई और आभार.
ReplyDeleteआपकी चिंता का कारण सही है मगर यह नासमझ समाज , विचारणीय पोस्ट , ऑंखें खोलने में सक्षम आपका आभार
ReplyDeletevandana ji ki baat se sahamt hoon sundar evam saarthak sandesh deti badhiyaa kavitaa ....
ReplyDeleteसंदेशपरक रचना. ....
ReplyDeleteSapna ji , behad sundar ...alpna ..kalpna ..
ReplyDeleteप्रेरक संदेश देने वाली रचना।
ReplyDeleteभ्रूण हत्या पर बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteबहुत सार्थक और मर्म स्पर्शी रचना...बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteनीरज
पुत्र ही बस पुत्र होंगे
ReplyDeleteपुत्र –वधु आयेगी कैसे ?
वंश-वृद्धि की लता
आंगन में लहरायेगी कैसे ?sambhlo, socho , jaago
वाह! प्रेरक संदेश देने वाली रचना।
ReplyDeleteकिन्तु आज - कल माहौल चाहे जो हो - का है ! ये बाते पुराणी हो चली है ! एक्का - दुक्का ही बची है ! फिर भी लय - माय और जागरुक करती कविता !
ReplyDeleteकिन्तु आज - कल माहौल चाहे जो हो - का है ! ये बाते पुराणी हो चली है ! एक्का - दुक्का ही बची है ! फिर भी लय - माय और जागरुक करती कविता !
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.. सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteआपको सपरिवार नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं
कल राज एक्सप्रेस जबलपुर एडिशन अवश्य देखिये आपका यह आलेख के साथ चुनी गया है..्बेहद प्रभावी एवम साहित्यिक दृष्टि से दोष हीन हीन भी है बधाईयां
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक एवं हृदय स्पर्शी रचना है सपना जी की .
ReplyDeleteहमारी बधाई उन तक प्रेषित करने का कष्ट करें.
- विजय तिवारी 'किसलय'
बेटी बचाओ अभियान : कन्या भ्रूण ह्त्या निश्चित तौर पर एक जघन्य सामाजिक बुराई है.
ReplyDeleteहिन्दी साहित्य संगम जबलपुर: बेटी बचाओ अभियान : कन्या भ्रूण ह्त्या निश्चित तौर पर एक जघन्य सामाजिक बुराई है.
Satya ka bhan karati bejod kavita.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है । सचमुच बेटी घर ही नही बाहर और पूरी दुनिया की रौनक होती है ।
ReplyDelete