Wednesday, August 15, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ
 
जनकवि स्व. कोदूराम “दलित

22..वीर सिपाही

वीर सिपाही फउज के, तुम सब झिन बन जाव
बइरी  मन   जायँ  तो   ,     तुरते मार भगाव
तुरते  मार  भगाव   ,   खूब  गरजो - ललकारो
आयँ सपड़ –मां उन्हला , पटक-पटक के मारो
विजय तुम्हर होही  तुम्हला सब झिन सँहराहीं
नाम  कमाओ   , बनो    फउज के  वीर सिपाही.

[तुम सब फौज के वीर सिपाही बन जाओ.यदि दुश्मन आ जायें तो उन्हें तुरंत मार-भगाओ.खूब गरजो और ललकारो.यदि पकड़ में आ जायें तो उन्हें मार डालो.तुम्हारी विजय होगी, तुम्हें सभी सहरायेंगे.फौज के वीर सिपाही बनकर नाम कमाओ.]

Sunday, August 12, 2012

सियानी गोठ


सियानी गोठ 
जनकवि कोदूराम “दलित”

15. बम

बौराइन बमबाज मन  ,  बम  ला करयँ तयार
बमबाजी कर निठुर मन ,  करथयँ नर-संहार
करथयँ नर-संहार, गिरायथयँ बम प्रयलंकर
बम –ला नष्ट करो -  हे बमलाई ! बम शंकर !!
बम –मां हवा, बिगाड़िन, विकट रोग फैलाइन
चौपट  करे  लगिन , बमबाज मनन बौराइन.

[ बमबाज लोग बौरा कर बम बम का निर्माण करते हैं. ये निष्ठुर लोग बमबाजी करके नर-संहार करते हैं. प्रलयंकारी बम गिराते हैं. हे बमलेश्वरी माँ ! हे बम शंकर ! बम को नष्ट कीजिये. बमबाजों  ने हवा को प्रदूषित किया है, कई असाध्य रोग फैलाये हैं और सब कुछ चौपट कर डाला है .]