Thursday, July 7, 2011

मेरा बचपन ऐसे बीता ,,,,,,,,,,(भाग – 12)


{श्रीमती सपना निगम की कलम से}
सन् 1978 की गर्मियों की छुट्टियों में नानी के गाँव गई थी. शहरी ताम-झाम से बहुत दूर एकदम दुर्गम क्षेत्र में स्थित उस गाँव में बिजली भी नहीं पहुँची नहीं थी. आस-पास जंगल ही जंगल. शाम होते-होते में खाना बन जाया करता था. खाना पकाने के किये लकड़ी और मिट्टी का चूल्हा प्रयोग में लाया जाता था. गाँव के किसी न किसी घर में दिन भर आग जला करती थी. गाँव भर के लोग उस घर में खपरैल (कवेलू) लेकर आग मांगने जाते और दहकते हुये कोयले लेकर अपने घर के चूल्हे में आग जलाते थे. अंधेरा होते –होते में खाना खाकर सोने की तैयारी में जुट जाते थे.
ऐसे ही एक रोज रात होने को थी. खाने की तैयारियाँ चल रही थी. बाहर से किसी महिला के रो-रो कर चीखने और चिल्लाने की आवाज आने लगी .मेरी नानी फौरन बाहर निकली और उसके पीछे-पीछे मैं भी भागी. पड़ौस में एक व्यक्ति अपनी पत्नी को पीटे जा रहा था. उसके घर वाले उस व्यक्ति को और उकसा कर कहे जा रहे थे अच्छा ठठा अपन डौकी ला, बड़ बढ़-चढ़ के गोठियाथे “(अच्छे से पीट अपनी पत्नी को, बहुत बढ़-चढ़ कर बात करती है.) पास-पड़ौसी बीच बचाव करने कोशिश कर भी रहे थे लेकिन वह व्यक्ति इतने अधिक गुस्से में था कि बीच में आने वालों को भी बुरी तरह से धक्का देकर हटा दे रहा था. बेचारी महिला रोये जा रही थी. गाँव के लोग घेरा बना कर चुपचाप इस घटना को देखे जा रहे थे.कुछ देर बाद उस व्यक्ति का गुस्सा शांत हुआ और वह पिटाई करना बंद करके अपने घर में घुस गया. कुछ ही देर बाद वह महिला भी घर में चली गई. ग्रामीण दर्शक भी अपने-अपने घरों में चले गये. मैं और नानी भी घर आ गये.
मैंने नानी से पूछा कि वह व्यक्ति अपनी पत्नी को क्यों पीट रहा था. नानी ने बताया कि गाँव में तो अक्सर ऐसी घटनायें होती ही रहती हैं. खेत से पति जल्दी आ गया , पत्नी जरा देर से पहुँची ,खाना बनने में विलम्ब हुआ तो पिटाई ,  ससुराल के किसी भी सदस्य के हुक्म को नहीं माना तो पिटाई . गाँव में किसी भी घर की बहू उस गाँव की बहू मानी जाती है  अत: गाँव भर के सभी बड़ों के सामने उनके सम्मान में सिर पर पल्ला रखना पड़ता है. कभी अंजाने में भी किसी बड़े-बुजुर्ग के सामने से सिर पर पल्ला रखे बिना कोई बहू गुजर गई और उस बुजुर्ग ने पति महोदय पर ताना कस दिया कि तेरी पत्नी बड़े-बुजुर्ग का लिहाज करना नहीं जानती ,तो पिटाई.गाँव में अपनी पत्नी को पीटने के लिये कोई बड़ा कारण होना जरुरी नहीं होता था. यह माना जाता था कि जो पति अपनी पत्नी को जितना ज्यादा डरा धमका कर काबू में रखता है वह उतना ही सफल पति माना जाता है.
दूसरे दिन सुबह-सुबह नानी के साथ पानी भरने के लिये गाँव के कुँए पर गई . रात को मार खाने वाली महिला भी पानी भरने के लिये आई हुई थी. उसकी हम उम्र अन्य महिलायें उसे सांत्वना दे रही थी. अरे ! जउन डौका अपन डौकी ला ज्यादा मारथे वो हा मया घलो ज्यादा करथे ( अरी ! जो पति अपनी पत्नी को ज्यादा पीटता है वह प्यार भी ज्यादा करता है.) ऐसी सांत्वना देने के पीछे शायद दो मकसद थे . एक तो यह कि पीड़ित महिला के मन में पति के प्रति अधिक दुराव की भावना पैदा न हो और उनका घर टूटने से बचे. दूसरा यह कि पति चाहे कितना भी दुष्ट क्यों न हो ,पत्नी अन्य किसी के मुँह से अपने पति की बुराई नहीं सुन सकती ,यही नारी स्वभाव है. अत: उसके पति को दुष्ट करार करके संत्वाना नहीं दी जा सकती थी .शायद इसीलिये उन महिलाओं ने ज्यादा पीटने वाले पति को ज्यादा प्यार करने वाला पति बताते हुये सांत्वना दे कर उसकी पीड़ा को कम करने का प्रयास  किया था.
ये घटनायें एक जमाने में हुआ करती थी. अब गाँवों में स्थितियाँ बदल चुकी हैं . ग्रामीण महिलायें बिल्कुल अनपढ‌ नहीं रह गई हैं. आंगन-बाड़ी और विद्यालयों में अपनी उपयोगिता साबित कर रही हैं. स्व-सहायता समूहों के जरिये अपना आर्थिक उत्थान भी कर रही हैं. कई गाँवों में सरपंच बनकर कुशल प्रबंधन द्वारा गाँव का विकास भी कर रही हैं. 
-श्रीमती सपना निगम

13 comments:

  1. भले ही यह स्थिति अब इतनी ज्यादा न हो पर अभी भी गाँव में शायद यही होता हो ... और गाँव ही क्यों ..अच्छे पढ़े लिखे लोंग , सभ्य कहे जाने वाले लोंग भी ऐसा करते देखे जाते हैं ...

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  2. मन का भय ही व्यक्त होता है इसहिंसा में।

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  3. गाँव में अपनी पत्नी को पीटने के लिये कोई बड़ा कारण होना जरुरी नहीं होता था. यह माना जाता था कि जो पति अपनी पत्नी को जितना ज्यादा डरा धमका कर काबू में रखता है वह उतना ही सफल पति माना जाता है.
    hun....Shayad aj bhi yahi hai....

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  4. वह व्यक्ति अपनी पत्नी को क्यों पीट रहा था. नानी ने बताया कि गाँव में तो अक्सर ऐसी घटनायें होती ही रहती हैं.

    उफ! कितना दुखद है यह सब....

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  5. @जउन डौका अपन डौकी ला ज्यादा मारथे वो हा मया घलो ज्यादा करथे

    इस तथ्य की सच्चाई जानने की जोखिम कोई नहीं उठाना चाहेगा।

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  6. मार्मिक संस्मरण...
    पत्नी को पीटने में मर्दानगी दिखाना अभी भी कहीं-कहीं प्रचलन में है

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  7. आप की लेख पढ़ कर , मै भी कुछ पल के लिए गाँव की यादो में खो गया १ बिलकुल सच्ची दृश्य प्रस्तुत की है आपने ! बधाई !

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  8. गाँव तो शायद आज भी उसी मानसिकता में जी रहे होंगे, नारी अधिकार जैसे विषय वहाँ पहुँचने में सदिया लगेंगी. आप का पहाड़ी बोली का प्रयोग बहुत अच्छा लगता है.

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  9. आदरणीय अरुण जी
    आपने सपना जी के सुन्दर लेख को प्रस्तुत करके बहुत अच्छा अनुभव करवाया, इसके लिए आभार आपका.
    मेरे ब्लॉग पर दर्शन देकर आपने सुन्दर टिपण्णी से भी मुझे कृतार्थ कर दिया.
    आपके ब्लोग्स को फालो कर रहा हूँ.
    संवाद बनाये रखियेगा.

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  10. अच्छी पोस्ट के लिए बधाई |मेरे ब्लिग पर आने के लिए आभार
    आशा

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  11. उत्तम पोस्ट | आभार

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  12. समय बदल रहा है , बदलाव भी आ रहा है। स्त्रियों की दशा पढ़ले से बेहतर हो रही है।

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