सियानी गोठ
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित”
29 - कुकुर
रखवारी घर के करय , जउन मिलय सो खाय
लुडुर - लुडुर मालिक करा , पूँछी कुकुर हलाय
पूँछी कुकुर हलाय, चिन्हय घर
के सब झन-ला
भूँक - भूँक के भगा देय
वो चोर मनन
–ला
कुकुर आय पर करय नहीं कभ्भू
गद्दारी
बइठ मुहाटी - मां करथय घर के रखवारी.
[ कुत्ता – घर की
रखवाली करता है, जो मिल जाता है खा लेता है. कुत्ता अपने मालिक के पास लुडुर-लुडुर
( आंचलिक शब्द )पूँछ हिलाता है.घर के सब लोगों को पहचानता है और चोरों को
भौंक-भौंक कर भगा देता है. कुत्ता है किंतु कभी गद्दारी नहीं करता.घर के प्रवेश
द्वार पर बैठ कर घर की रखवाली करता है.]
सुन्दर रचना बाबूजी के, प्रेरणा हमला लेना चाही।
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ी साहित्य के घलो डंका बजना चाही।
बहुत सुन्दर .....बधाई।
सच है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteआभार ।।
कुक्कुर-खांसी पाल के, बैठे रविकर द्वार ।
घर की रखवाली करे, पुत्र बसा ससुरार ।
पुत्र बसा ससुरार, श्वान सी निद्रा अच्छी ।
एकमात्र दे कष्ट, घूमती कुक्कुर-मच्छी ।
हाथ लकुटिया थाम, कलेजा धुक्कुर धुक्कुर ।
राम राम सतनाम, अवस्था रविकर कुक्कुर ।।