(चित्र गूगल से साभार)
ज्ञानपीठ नालंदा मैं था
गुरुजनों का प्रसाद
किसी जमाने में बच्चों
मैं रहा बहुत आबाद
राजा कुमार गुप्त ने
मुझे स्थापित करवाया
पाली भाषा में विद्यार्थी
करते पठन संवाद
इस देश के बाहर से भी
ज्ञानार्जन करने आते
अब ज्यादा कहूँ तो
तुम समझो न इसे अपवाद
राजाश्रय मिला हर्षवर्द्धन
का
बहुत प्रसिद्धि पाई
ह्वेन्तसांग ने यहाँ से
जाकर
किया मुझे बहुत याद
तुर्कों ने था किया आक्रमण
तहस-नहस कर डाला
धूं-धूं चिता जलाई मेरी
करता किससे फ़रियाद
शिक्षा सबके लिये जरूरी
सुनो मेरे प्रहलाद
शिक्षित बनो संगठित रहो
तुम्हें मेरा आशीर्वाद
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श्रीमती
सपना निगम
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-07-2015) को "घिर-घिर बादल आये रे" (चर्चा अंक- 2027) (चर्चा अंक- 2027) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हमे गर्व है अपनी प्राचीन धरोहर पर...जो हमारे देश में था और कहीं नहीं था....
ReplyDeleteकविता के माध्यम से अपने इस प्राचीन धरोहर से मिलवाया इसके लिए ह्रदय से आभार।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteनालंदा और तक्षशिला, ज्ञान -विज्ञान के अद्भुत केन्द्र थे, किन्तु अब तक्षशिला पाकिस्तान चला गया है और नालंदा का मात्र नाम शेष रह गया है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपनै धरोहर को सुरक्षित नहीं रख पाए।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeletekya likha hai aapne, thanks
ReplyDeleteतिरंगा फोटो