Tuesday, December 27, 2011

“नन्हीं सी आशा.”


बिटिया मेरे जीवन की नन्हीं – सी आशा
वात्सल्य - गोरस  में  डूबा हुआ  बताशा.

तुतली बोली , डगमग चलना और शरारत
नया -नया नित दिखलाती है खेल-तमाशा.

पल में रूठे – माने, पल में रोये – हँस दे
बिटिया का गुस्सा है ,रत्ती- तोला- माशा.

दिनभर दफ्तर में थककर जब घर मैं आऊँ
देख मुझे  मुस्काकर  कर दे  दूर हताशा.

सुख -दु:ख दोनों धूप -छाँव से आते –जाते
ठहर न पाई इस आंगन में कभी निराशा.

जिस घर भी ले जन्म स्वर्ग-सा उसे सजा दे
अपने  हाथों  ब्रम्हा जी ने  इसे  तराशा.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )

18 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रभावशाली रचना ...

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  2. नन्हीं सी आशा हमेशा बनी रहे ..सुन्दर प्रस्तुति

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  3. नन्नी नहीं खासी बड़ी है यह आशा ,बढ़ा देती जीवन प्रत्याशा .

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  4. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  5. बहुत सुन्दर मनभावन बाल स्वरुप का चित्रण..बच्चे मन मोह लेते है ,प्रतिपल जीने की उमंग भर देते हैं अपने मासूम अंदाज़ से ..
    kalmdaan.blogspot.com

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  6. बहुत सुन्दर...
    बधाई.

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  7. betiya to hoti hi pyari hai...
    betiyo par bahut hi sundar rachana ki hai apne....

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  8. बहुत ही सुन्दर और खूबसूरत एहसास हैं ...

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  9. बिटिया जेसा तो कोई भी नहीं ...पर लोग कहाँ समझते हैं

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  10. वात्सल्य - गोरस में डूबा हुआ बताशा
    रत्ती- तोला- माशा.
    और
    अपने हाथों ब्रम्हा जी ने इसे तराशा

    कम्माल है भाई जी कम्माल, आनंद मिला इसे पढ़ कर

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  11. जिस घर भी ले जन्म स्वर्ग-सा उसे सजा दे
    अपने हाथों ब्रम्हा जी ने इसे तराशा.

    बहुत सुंदर !!

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  12. बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ, बिटिया जैसी..

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  13. sach, bitiya ka ehsas hi bahut madhur hota hai. bahut hi achchhi kavita....... sunder prastuti.

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