‘बिटिया’ मेरे जीवन की नन्हीं – सी आशा
वात्सल्य - गोरस में डूबा हुआ बताशा.
तुतली बोली , डगमग चलना और शरारत
नया -नया नित दिखलाती है खेल-तमाशा.
पल में रूठे – माने, पल में रोये – हँस दे
बिटिया का गुस्सा है ,रत्ती- तोला- माशा.
दिनभर दफ्तर में थककर जब घर मैं आऊँ
देख मुझे मुस्काकर कर दे दूर हताशा.
सुख -दु:ख दोनों धूप -छाँव से आते –जाते
ठहर न पाई इस आंगन में कभी निराशा.
जिस घर भी ले जन्म स्वर्ग-सा उसे सजा दे
अपने हाथों ब्रम्हा जी ने इसे तराशा.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )
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ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रभावशाली रचना ...
ReplyDeleteनन्हीं सी आशा हमेशा बनी रहे ..सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteAAPKI YAH KHUSHI SDA BNI RAHE
ReplyDeleteनन्नी नहीं खासी बड़ी है यह आशा ,बढ़ा देती जीवन प्रत्याशा .
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मनभावन बाल स्वरुप का चित्रण..बच्चे मन मोह लेते है ,प्रतिपल जीने की उमंग भर देते हैं अपने मासूम अंदाज़ से ..
ReplyDeletekalmdaan.blogspot.com
बेहतरीन!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबधाई.
betiya to hoti hi pyari hai...
ReplyDeletebetiyo par bahut hi sundar rachana ki hai apne....
बहुत ही सुन्दर और खूबसूरत एहसास हैं ...
ReplyDeleteबिटिया जेसा तो कोई भी नहीं ...पर लोग कहाँ समझते हैं
ReplyDeletebahut pyari rachna...
ReplyDeletesadar badhai
वात्सल्य - गोरस में डूबा हुआ बताशा
ReplyDeleteरत्ती- तोला- माशा.
और
अपने हाथों ब्रम्हा जी ने इसे तराशा
कम्माल है भाई जी कम्माल, आनंद मिला इसे पढ़ कर
जिस घर भी ले जन्म स्वर्ग-सा उसे सजा दे
ReplyDeleteअपने हाथों ब्रम्हा जी ने इसे तराशा.
बहुत सुंदर !!
बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ, बिटिया जैसी..
ReplyDeletesach, bitiya ka ehsas hi bahut madhur hota hai. bahut hi achchhi kavita....... sunder prastuti.
ReplyDeletevery nice.
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