सियानी गोठ


जनकवि कोदूराम “दलित”
19.गोड़
पूजे जाथे गोड़ हर , मुँड़ नहिं पूजे जाय
सबो अंग ले जास्ती , गोड़ काम के आय
गोड़ काम के आय, गोड़ ले निकलिस गंगा
सहिथें गजब कलेश , जउन मन रथें अपंगा
पावन चरणामृत पीये बर सब झिन पाथे
गोड़ देउँता अउ गुरु-जन के पूजे जाथे.
[ गोड़ = पैर, चरण : पैर पूजे जाते हैं, सिर नहीं पूजा जाता. सभी
अंगों से अधिक पैर काम के हैं. पैरों से ही गंगा निकली है. अपंग, अपाहिग को अत्यंत
ही क्लेश सहना पड़ता है. पावन चरणामृत पीने के लिये लोग प्राप्त करते हैं, देवता और
गुरुजन के पैर पूजे जाते हैं ]
पैर पूजे जाते हैं, सिर नहीं पूजा जाता.
ReplyDeleteआभार ||
यह सच है कि जनकविताओं का स्वाद केवल मानव सेवा और आध्यात्म से जुड़े लोग ही ले पाते हैं.
ReplyDeleteफिर भी पाठकदृष्टि को जनकवियों की बहुत सी बातें लोक-परम्पराओं से भिन्न लगती हुई अखर रही हैं.
"गोड़ ले निकलिस गंगा"
@ गंगा का उद्गम किसके गोड़ से हुआ है? अब तक तो सुना था और प्रचलन में भी है कि शिव की जटाओं से निकली है गंगा.
निगम जी, मुझे लोक से जुड़ी हर विधा भाती है... 'अनादर' करना मेरा औचित्य नहीं है.
क्या कहूँ ;;;;अपने अपने विचार हैं आदर हर व्यक्तित्व का होता है पर समय समय की बात होती है|
ReplyDeleteसच है, पैर ही पूजे जाते।
ReplyDeleteआदरणीय प्रतुल जी, छत्तीसगढ़ की आंचलिक कविता पढ़ने आप आये, अंचल की ओर से आपका स्वागत करता हूँ.आपका आना आपके लोक-प्रेम का परिचायक है.
ReplyDelete@ गंगा के उद्गम के बारे कई तरह की मान्यतायें हैं.
* कहीं यह उल्लेख है कि गंगा विष्णु के पैर के नाखून से निकली है.
* कहीं यह लिखा है कि गंगा विष्णु के पैर के पसीने से निकली फिर ब्रम्हा जी के कमण्डल में समा गई.
* कहीं यह उल्लेखित है कि विष्णुजी के चरणों को धोया गया वही जल ब्रम्हा जी के कमण्डल में गंगा के रूप रहा.
* यह भी कथा है कि जब भगीरथ ने ब्रम्हा जी से गंगा को पृथ्वी पर ले जाने का वरदान मांगा और ब्रम्हा जी ने तथास्तु कहा तब गंगा प्रचंड वेग से कमंडल से निकली.जिससे इतनी भयंकर आवाज हुई कि तीनों लोक घबरा उठे.भयंकर गर्जन सुनकर विष्णु जी भी शेष शैया से जागे उन्होंने तेज प्रवाह से बहती गंगा के मार्ग में अपने पैर का अंगूठा रख दिया जिससे गंगा का वेग कम हुआ.अत: इसे भी गंगा का उद्गम माना गया है.
* विष्णु पादोदकं तीर्थं , जठरे धावमाम्यहम.(यहाँ भी विष्णु के पैरों से उद्भव का संकेत है)
* गंगा आरती "हरि पद पदम प्रसूता, विमल वारि धारा
ब्रम्ह देव भागीरथी , शुचि पुण्य धारा."
में भी हरि पद से जन्म का संकेत है.
* राम चरित मानस के अयोध्या कांड का एक प्रसंग है जब केंवट प्रभु राम को अपनी नाव में सवार होने से पहले उनके चरण धोते हैं. गोस्वामी तुलसी दास ने यहाँ लिखा है
"पद नख निरखि देव सरि हरषीं" अर्थात प्रभु श्री राम(विष्णु के अवतार)के पैर के नख देख कर देव सरि( देव लोक की सरिता याने गंगा) हर्षित हुईं.गंगा की उत्पत्ति विष्णु के पैर के नाखून से हुई थी अत: भगवान श्री राम के पैर के नाखून को देख कर गंगा जी हर्षित हुईं.
* हर कथा में यह बताया गया है कि गंगा के प्रचंड वेग को पृथ्वी पर शंकर भगवान के अलावा कोई दूसरा नहीं रोक सकता था. ब्रम्हा जी ने ही भगीरथ को सलाह दी थी कि गंगा यदि सीधे पृथ्वी पर जायेगी तो उसका प्रबल वेग पृथ्वी को चीर कर सीधा पाताल तक पहुँच जायेगा.अत: पहले शंकर जी की तपस्या करके उन्हें गंगा को धारण करने के लिये राजी करो.तब भगीरथ ने इस हेतु शंकर जी की तपस्या की थी. इस प्रकार शंकर जी की जटा ने गंगा की उत्पत्ति नहीं की थी बल्कि उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया था.
आशा है आपकी शंका का समाधान हो गया होगा. पिताजी ने सियानी गोठ की इन कुण्डलियों का सृजन 1965 से 1967 के बीच किया था. आपकी शंका ने मेरे मन में भी जिज्ञासा उत्पन्न कर दी . कुछ गूगल में सर्च की, कुछ जानकारी मेरे विद्वान स्टाफ सदस्य श्री एस.के पाण्डेय से प्राप्त की.
गूगल सर्च से जिन विद्वानों के लेख से सम्बंधित जानकारी मिली उनके लिंक उन सभी के प्रति आभार प्रकट करते हुये आपके लिये दे रहा हूँ ,कृपया समय निकाल कर जरूर पढ़ें, बड़े ही ज्ञानवर्द्धक हैं.
http://www.thelounge.hungama.com/music-song-Vishnu%20Ji%20Ke%20Nakh%20Se%20Nikli%20Hai%20Ganga%20Maa-290238
http://pryas.wordpress.com/2009/07/16/ganga_ka_udgam-3/
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AA%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%95_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97
http://khabar.ibnlive.in.com/news/19830/9
कृपया आते रहें. मैं तो धार्मिक ज्ञान में बिल्कुल निरंक हूँ, आपके प्रश्न ने इतनी मेहनत करने को मजबूर किया, आपके कारण मेरा ज्ञान वर्द्धन हुआ, आभार आपका.
प्रिय अरुण निगम जी,
ReplyDelete@ आपके इस परिश्रम को नमन करता हूँ जिसके कारण मुझे बिना श्रम के ही तमाम जानकारी मिल गयी. अब आपके इकट्ठे किये गये लिंक्स का लाभ लेने भी जाऊँगा.
मुझे पौराणिक कथाओं के आधुनिक और सुपाच्य अर्थ निकालने में बहुत आनंद मिलता है. समय-समय पर अपनी ताज़ा बनी जिज्ञासाओं को पूरा किया करूँगा.
आपका पुनः आभार.
प्रिय निगम जी हमें जानकारी तो थी| गंगा का प्रथम उद्गम
ReplyDeleteभगवान विष्णु के चरणों से हुवा है| आपके द्वारा पूरा वृतांत सुनकर
बहुत हि अच्छा लगा|ज्ञान वर्धन हेतु धन्यवाद आभार