सियानी गोठ

जनकवि कोदूराम “दलित”
14. सज्जन
संगत सज्जन के करो , सज्जन सूपा आय
दाना – दाना ला रखय , भूँसा देय उड़ाय
भूँसा देय उड़ाय , असल दाना ला
बाँटय
फुन-फुन के कनकी , कोंढ़ा,गोंटी सब छाँटय
छोड़ो तुम कुसंग , बन जाहू
अच्छा मनखे
सज्जन हितुवा आय, करो संगत सज्जन के.
बहुत खूब ॥
ReplyDeleteशुक्रवार के मंच पर, लाया प्रस्तुति खींच |
ReplyDeleteचर्चा करने के लिए, आजा आँखे मीच ||
स्वागत है-
charchamanch.blogspot.com
Beautiful and just explanation of the poetic essence .THANKS FOR THIS LESS KNOWN KABIR' WORK.
ReplyDeleteसज्जन का साथ सच में अमृत सम है
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