Thursday, May 10, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ 
जनकवि कोदूराम “दलित”

18.कतरनी

काटय - छाँटय  कतरनी, सूजी  सीयत  जाय
सहय  अनादर  कतरनी , सूजी  आदर  पाय
सूजी  आदर पाय ,  रखय  दरजी  पगड़ी मां
अउर  कतरनी  ला चपकय  वो गोड़ तरी-मां
फल पाथयँ उन वइसन, जइसन करथयँ करनी
सूजी   सीयय, काटत - छाँटत  जाय कतरनी.

[ कैंची  : कतरनी याने कैंची काटते – छाँटते जाती है. सुई सीते जाती है. कैंची को अनादर मिलता है. सुई सम्मान पाती है. दर्जी सुई को अपनी पगड़ी में खोंच कर रखता है और कैंची को अपने पैरों तले दबा कर रखता है. जो जैसी करनी करता है, उसे वैसे ही फल प्राप्त होते हैं. कतरनी काटने-छाँटने का कार्य करती है और सुई सीने का.]

भावार्थ : किये गये कर्म के अनुरूप ही फल प्राप्त होते हैं. जिस प्रकार सुई सीने का कार्य करती है अर्थात जोड़ने का कार्य करती है तो दर्जी उसे अपनी पगड़ी में स्थान देकर सम्मानित करता है. वहीं कतरनी काटती छाँटती है अर्थात अलगाव उत्पन्न करती है. दर्जी कैंची को अपने पैरों तले स्थान देता है. अत: सबको परस्पर जोड़ने का कार्य करें व सम्मान पायें.

6 comments:

  1. वाह ...कितनी सही सीख .... बहुत बढ़िया शृंखला

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  2. सबका अपना अपना कार्य है, कोई बराबरी नहीं।

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  3. बढ़िया |
    सादर प्रणाम ||
    आभार |

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  4. बिल्कुल सही सीख .....
    आभार!

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  5. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.

    माँ है मंदिर मां तीर्थयात्रा है,
    माँ प्रार्थना है, माँ भगवान है,
    उसके बिना हम बिना माली के बगीचा हैं!

    संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी

    आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
    आपका
    सवाई सिंह{आगरा }

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