Sunday, May 6, 2012

सियानी गोठ


सियानी गोठ 
जनकवि कोदूराम “दलित”

16. तिनहा - तिनका

तिनहा  - तिनका मन रथें, पातर अउ कमजोर
नान  –  नान  लइका  घलो   , उन्हला देथें टोर
उन्हला    देथें    टोर   ,    डोर    वोकरे    बनाथें
तब   वोला  टोरना   गजब   मुश्किल  हो  जाथे
रस्सा-कशी खेल खेलयँ, झींकयँ अड़बड़ झन
टूटयँ  नहीं  डोर  बनके  तिनहा - तिनका मन.

[ घास फूस, तिनका : घास फूस, तिनका अत्यंत ही पतले और कमजोर रहते हैं. इन्हें नन्हे-नन्हे बच्चे भी तोड़ देते हैं.  इन्हीं से रस्सी बनाई जाती है तब उसे तोड़ना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. रस्सा-कशी के खेल में बहुत सारे लोग एक ही रस्सी को खींचते हैं लेकिन घास फूस और तिनके के मेल से बनी रस्सी को तोड़ नहीं पाते हैं.]

भावार्थ : एक दूसरे से बिखर कर न रहें. परस्पर मिल कर रहें. एकता में गजब की शक्ति होती है.

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