सियानी गोठ
जनकवि कोदूराम “दलित”
16. तिनहा - तिनका
तिनहा - तिनका मन
रथें, पातर अउ
कमजोर
नान – नान लइका घलो , उन्हला देथें टोर
उन्हला देथें टोर , डोर वोकरे बनाथें
तब वोला टोरना गजब
मुश्किल हो जाथे
रस्सा-कशी खेल खेलयँ, झींकयँ अड़बड़ झन
टूटयँ नहीं डोर बनके तिनहा - तिनका मन.
[ घास फूस, तिनका : घास फूस, तिनका अत्यंत ही
पतले और कमजोर रहते हैं. इन्हें नन्हे-नन्हे बच्चे भी तोड़ देते हैं. इन्हीं से रस्सी बनाई जाती है तब उसे तोड़ना
बहुत ही मुश्किल हो जाता है. रस्सा-कशी के खेल में बहुत सारे लोग एक ही रस्सी को
खींचते हैं लेकिन घास फूस और तिनके के मेल से बनी रस्सी को तोड़ नहीं पाते हैं.]
भावार्थ : एक दूसरे से
बिखर कर न रहें. परस्पर मिल कर रहें. एकता में गजब की शक्ति होती है.
सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteएकता में शक्ति है..
ReplyDelete