सियानी गोठ
जनकवि कोदूराम “दलित”
17. पथरा
भाई, एक खदान के
, सब्बो पथरा आयँ
कोन्हों खूँदे जायँ नित , कोन्हों पूजे जायँ
कोन्हों पूजे जायँ , देउँता बन मंदर के
खूँदे जाथयँ वोमन ,फरश बनय जे घर के
चुनो ठउर सुग्घर , मंदर के पथरा साहीं
तब तुम घलो सबर दिन पूजे जाहू भाई.
[ भाई, सारे पत्थर एक ही खदान के हैं. कोई नित्य ही
खूँदे जाते हैं (पैरों के नीचे आना) तो कोई पूजे जाते हैं. मंदिर में देवता की
प्रतिमा बना पत्थर पूजा जाता है और घर की फर्श बनने वाला पत्थर खूँदा जाता है
अर्थात फर्श पर लोग पैर रख चलते हैं. अत: मंदिर के पत्थर की तरह सुंदर ठौर चुनिये
तब तुम भी हर दिन पूजे जाओगे.]
भावार्थ: जैसे एक खदान के सारे पत्थर एक सरीखे होते हैं उसी
प्रकार से सारे मनुष्य भी एक समान ही होते हैं. जो पत्थर देव-प्रतिमा बन कर मंदिर
में स्थापित होता है उसके प्रति लोगों के मन में श्रद्धा,भक्ति और विश्वास जागता है, लोग उसकी पूजा करते हैं , किंतु
जो पत्थर घर की फर्श बनता है वह पैरों के
द्वारा खूँदा ही जाता है. अत: स्वयम् को उत्तम
स्थान पर स्थापित करें.
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteहमारी ओर से -
बधाई स्वीकारें ||
shandar post
ReplyDeleteसबका एक ही मूल,
ReplyDeleteराह पड़े कोई पूजा जाये।