Monday, May 23, 2011

मेरा बचपन ऐसे बीता,,,,,,,,,,,(भाग-3)


स्लेट पट्टी हमारे जमाने मेँ साफ्ट कापी का काम करती थी. लिखो मिटाओ फिर उपयोग मेँ लाओ. उसी मेँ अभ्यास, उसी मेँ गृह कार्य .बाल मन कितना भोला होता है , यह अब समझ मेँ आता है. गीली स्लेट को सुखाने के लिये एक मंत्र का जाप करते थे ....मेरी पट्टी सूख जाय, सबकी पट्टी मत सूखे. इस दौरान पट्टी और अपने दिल को सीधी हथेली से एक के बाद एक् छूने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती थी. उस उम्र मेँ ऐसा विश्वास था कि ऐसा करने से पट्टी जल्दी सूखती है. कितना भोला था बचपन.
एक विषय मन-गणित हुआ करता था जिसमेँ मौखिक प्रश्नो के उत्तर मन ही मन मेँ ही हल करके मौखिक रूप से देना होता था. “इमला” के अंतर्गत गुरुजी मौखिक वाक्य बोलते थे उसे स्लेट पर लिखना पड़्ता था. हम सभी टाट पट्टी पर बैठते थे. फर्रास जब घंटी बजाता था तो छुट्टी होने की खुशी मेँ सारी कक्षाओँ के बच्चे एक साथ चिल्लाकर शोर मचाते हुये कक्षाओँ से बाहर निकलते थे. वाह प्राथमिक शाला का वह समय कितना सुखद था.
प्राथमिक शाला मेँ पढाई के अलावा शारीरिक स्वच्छता पर भी ध्यान दिया जाता था. समय-समय पर गुरुजी स्वयम हमारे नाखून, बाल और दांतोँ की जांच करते थे. हमेशा साफ-सुथरा रहना पड़्ता था. कला का विकास करने के लिये बीच बीच मेँ रंगीन कागज के फूल बनाना और मिट्टी के खिलौने बनाना भी सिखाया जाता था. काली मिट्टी को बारीक पीस कर छानना, फिर पानी मिला कर आटे की तरह सानना, मजबूती रखने के लिये मिट्टी मेँ कपास के रेशोँ को मिलाना अब तक वह प्रक्रिया भुला नहीँ पाया.
इस प्रकार से तैयार की गई मिट्टी से आम, अनार, अंगूर, केला, सीताफल जैसे खिलौने बनाते थे . मिट्टी सूखने के बाद रंगीन चाक का चूरा बना कर खिलौने मेँ रंग भरा करते थे. पुट्ठे के बड़े से डिब्बे से मकान बनाया करते थे.इस मकान को रंग बिरंगे चमकीले कागजोँ से सजा कर् शाला ले जाया करते थे. अब ऐसी बहुउद्देशीय शालायेँ कहाँ मिलेंगी ,जिनमेँ बच्चोँ का सर्वांगीण विकास किया जाता था. यादेँ और बातेँ छोटी-छोटी जरूर हैँ मगर यही युग परिवर्तन की दास्तान है......क्रमश:...........
-अरुण कुमार निगम
 आदित्य नगर,दुर्ग
 (छत्तीसगढ)

5 comments:

  1. मिट्टी से आम, अनार, अंगूर, केला, सीताफल जैसे खिलौने बनाने का काम बचपन में मैंने भी किया है.
    मेरी भी यादेँ ताजा हो आईं......रोचक संस्मरण है.
    शुभकामनाएँ...आभार।

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  2. आजकल भी एसस और एचपी जैसी कम्पनियाँ भी स्लेट बना रही हैं।

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  3. रोचक, पठनीय श्रृंखला.

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  4. बचपन के दिन भी क्या दिन थे,

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  5. सुन्दर दास्तान ! कुछ नया नया सा भी लग रहा है ....चल रही हूँ आपके साथ साथ..

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