यही धर्म है मोक्ष पथगामी
मध्यम मार्ग सरल
पाँच अनुशीलन हैं इसके
मानव पालन कर.
सत्कर्मों की पूँजी बना ले
प्रेम-भाव अविरल
कर्मों को अपना धर्म समझ ले
करना किसी से न छल.
प्राणीमात्र पर दया करना तू
जो हैं दीन-निर्बल
बुद्ध ने जो सन्देश दिया है
उस पर करना अमल.
राग-रंग नहीं करना तुझको
संयम है तेरा बल
मानव जीवन तुझे मिला है
रखना इसे निर्मल.
त्रिपिटक ग्रंथों में समाये
जीवन सार सकल
मध्यम मार्ग सरल
पाँच अनुशीलन हैं इसके
मानव पालन कर.
सत्कर्मों की पूँजी बना ले
प्रेम-भाव अविरल
कर्मों को अपना धर्म समझ ले
करना किसी से न छल.
प्राणीमात्र पर दया करना तू
जो हैं दीन-निर्बल
बुद्ध ने जो सन्देश दिया है
उस पर करना अमल.
राग-रंग नहीं करना तुझको
संयम है तेरा बल
मानव जीवन तुझे मिला है
रखना इसे निर्मल.
त्रिपिटक ग्रंथों में समाये
जीवन सार सकल
प्रज्ञा शील करुणा अपना ले
मोक्ष की कामना कर.
स्वर्ग-नर्क सब किसने देखा ?
किसने देखा कल ?
परम-धाम जाना है तुझको
बुद्ध की राह पर चल.
बुद्धं शरणम गच्छामि
धम्मं शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि
पंचशील के अनुगामी.
-श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर,दुर्ग
(छत्तीसगढ़)
मोक्ष की कामना कर.
स्वर्ग-नर्क सब किसने देखा ?
किसने देखा कल ?
परम-धाम जाना है तुझको
बुद्ध की राह पर चल.
बुद्धं शरणम गच्छामि
धम्मं शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि
पंचशील के अनुगामी.
-श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर,दुर्ग
(छत्तीसगढ़)
बुद्धमार्ग है मध्यमार्गी, सुन्दर कविता।
ReplyDeleteरचना के माध्यम से बहुत अच्छा संदेश है निगम जी । कर्म को धर्म समझें और पूंजी इकटठा करें सत्कर्मो की। तीसरा पद भी ’दया धर्म का मूल है ’ । सही भी है स्वर्ग नर्क किसने देखा है ं एक उत्तम रचना । धन्यवाद
ReplyDeleteभगवान बुद्ध के संदेशों का पालन करने के लिए प्रेरित करती सुंदर कविता।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
भगवान बुद्ध के संदेशों को लेकर कविता सृजन बहुत अच्छा है |प्राणी मात्र पर दया हि काफी है प्रेम प्रज्ञा शील करुणा दया अपने आप उत्पन्न हो जातें हैं धन्य है प्रयास साधूवाद
ReplyDeleteभगवान बुद्ध को नमन ...शुभकामनायें
ReplyDeletebahut hi achchhi kavita hai.
ReplyDeletedr.ashish
is kavita ke vicharo ka ham sabko anusaran karna chahiye.
ReplyDeletedr priya