Tuesday, May 15, 2012

सियानी गोठ


सियानी गोठ  
 
जनकवि कोदूराम “दलित”

20.विज्ञान

आइस   जुग  विज्ञान के , सीखो  सब  विज्ञान
सुग्घर आविस्कार कर ,  करो जगत कल्यान
करो जगत कल्यान, असीस सबो झिन के लो
तुम्हू  जियो  अउ दूसर  मन ला घलो जियन दो
ऋषि मन के  विज्ञान , सबो ला सुखी बनाइस
सीखो सब  विज्ञान  ,    येकरे जुग अब आइस.

[विज्ञान :  विज्ञान का युग आया, सब विज्ञान सीखें. अच्छे आविष्कार कर के जगत का कल्याण करें. सब लोगों का आशीष प्राप्त करें. आप भी जीयें और दूसरों को भी जीने दें. ऋषियों ने विज्ञान के प्रयोग से सब को सुखी बनाया. विज्ञान का युग आया, सब विज्ञान सीखें.]

Monday, May 14, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ
जनकवि कोदूराम “दलित”

19.गोड़

पूजे  जाथे  गोड़  हर  ,  मुँड़  नहिं   पूजे   जाय
सबो  अंग   ले  जास्ती   , गोड़  काम के आय
गोड़  काम के आय, गोड़ ले निकलिस गंगा
सहिथें  गजब कलेश  , जउन मन रथें अपंगा
पावन  चरणामृत   पीये   बर  सब झिन  पाथे
गोड़  देउँता   अउ   गुरु-जन  के   पूजे   जाथे.

[ गोड़ = पैर, चरण  : पैर पूजे जाते हैं, सिर नहीं पूजा जाता. सभी अंगों से अधिक पैर काम के हैं. पैरों से ही गंगा निकली है. अपंग, अपाहिग को अत्यंत ही क्लेश सहना पड़ता है. पावन चरणामृत पीने के लिये लोग प्राप्त करते हैं, देवता और गुरुजन के पैर पूजे जाते हैं ]

Thursday, May 10, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ 
जनकवि कोदूराम “दलित”

18.कतरनी

काटय - छाँटय  कतरनी, सूजी  सीयत  जाय
सहय  अनादर  कतरनी , सूजी  आदर  पाय
सूजी  आदर पाय ,  रखय  दरजी  पगड़ी मां
अउर  कतरनी  ला चपकय  वो गोड़ तरी-मां
फल पाथयँ उन वइसन, जइसन करथयँ करनी
सूजी   सीयय, काटत - छाँटत  जाय कतरनी.

[ कैंची  : कतरनी याने कैंची काटते – छाँटते जाती है. सुई सीते जाती है. कैंची को अनादर मिलता है. सुई सम्मान पाती है. दर्जी सुई को अपनी पगड़ी में खोंच कर रखता है और कैंची को अपने पैरों तले दबा कर रखता है. जो जैसी करनी करता है, उसे वैसे ही फल प्राप्त होते हैं. कतरनी काटने-छाँटने का कार्य करती है और सुई सीने का.]

भावार्थ : किये गये कर्म के अनुरूप ही फल प्राप्त होते हैं. जिस प्रकार सुई सीने का कार्य करती है अर्थात जोड़ने का कार्य करती है तो दर्जी उसे अपनी पगड़ी में स्थान देकर सम्मानित करता है. वहीं कतरनी काटती छाँटती है अर्थात अलगाव उत्पन्न करती है. दर्जी कैंची को अपने पैरों तले स्थान देता है. अत: सबको परस्पर जोड़ने का कार्य करें व सम्मान पायें.

Tuesday, May 8, 2012

सियानी गोठ


सियानी गोठ 
जनकवि कोदूराम “दलित”

17. पथरा

भाई, एक  खदान के ,  सब्बो पथरा आयँ
कोन्हों खूँदे जायँ नित , कोन्हों पूजे जायँ
कोन्हों  पूजे  जायँ    ,  देउँता  बन मंदर के
खूँदे जाथयँ वोमन ,फरश बनय जे घर के
चुनो  ठउर  सुग्घर  , मंदर के पथरा साहीं
तब  तुम  घलो   सबर  दिन पूजे जाहू भाई.

[ भाई, सारे पत्थर एक ही खदान के हैं. कोई नित्य ही खूँदे जाते हैं (पैरों के नीचे आना) तो कोई पूजे जाते हैं. मंदिर में देवता की प्रतिमा बना पत्थर पूजा जाता है और घर की फर्श बनने वाला पत्थर खूँदा जाता है अर्थात फर्श पर लोग पैर रख चलते हैं. अत: मंदिर के पत्थर की तरह सुंदर ठौर चुनिये तब तुम भी हर दिन पूजे जाओगे.]

भावार्थ: जैसे एक खदान के सारे पत्थर एक सरीखे होते हैं उसी प्रकार से सारे मनुष्य भी एक समान ही होते हैं. जो पत्थर देव-प्रतिमा बन कर मंदिर में स्थापित होता है उसके प्रति लोगों के मन में श्रद्धा,भक्ति और  विश्वास जागता है, लोग उसकी पूजा करते हैं , किंतु  जो पत्थर घर की फर्श बनता है वह पैरों के द्वारा खूँदा ही जाता है. अत:  स्वयम् को उत्तम स्थान पर स्थापित करें.

Sunday, May 6, 2012

सियानी गोठ


सियानी गोठ 
जनकवि कोदूराम “दलित”

16. तिनहा - तिनका

तिनहा  - तिनका मन रथें, पातर अउ कमजोर
नान  –  नान  लइका  घलो   , उन्हला देथें टोर
उन्हला    देथें    टोर   ,    डोर    वोकरे    बनाथें
तब   वोला  टोरना   गजब   मुश्किल  हो  जाथे
रस्सा-कशी खेल खेलयँ, झींकयँ अड़बड़ झन
टूटयँ  नहीं  डोर  बनके  तिनहा - तिनका मन.

[ घास फूस, तिनका : घास फूस, तिनका अत्यंत ही पतले और कमजोर रहते हैं. इन्हें नन्हे-नन्हे बच्चे भी तोड़ देते हैं.  इन्हीं से रस्सी बनाई जाती है तब उसे तोड़ना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. रस्सा-कशी के खेल में बहुत सारे लोग एक ही रस्सी को खींचते हैं लेकिन घास फूस और तिनके के मेल से बनी रस्सी को तोड़ नहीं पाते हैं.]

भावार्थ : एक दूसरे से बिखर कर न रहें. परस्पर मिल कर रहें. एकता में गजब की शक्ति होती है.

Saturday, May 5, 2012

सियानी गोठ


 सियानी गोठ 
 
जनकवि कोदूराम “दलित”

15.फूट

होही  सब  झन के  भला , रहो सबो  झिन एक
झगड़ा – झाँसा  छोड़ के , बनो सबो झिन नेक
बनो सबो  झिन  नेक , देस ला  अपन  बनाओ
आजादी   के   गंगा   ला,   घर  -  घर  पहुँचाओ
फूट- पिशाचिन भला नइ करय कोन्हों मन के
मिल-जुल के  सब रहो, भला होही सब झन के.

[ सभी लोगों का भला होगा,  सभी एक होकर रहें.  झगड़ा , फरेब छोड़कर सभी नेक बनें.  अपने देश की उन्नति करें.  आजादी की गंगा को घर-घर तक पहुँचायें.  फूट रूपी   पिशाचिनी किसी का भी भला नहीं करती है. सभी मिल जुलकर रहें  ,इसी से सभी का भला होगा.]

Thursday, May 3, 2012


 सियानी गोठ 

जनकवि कोदूराम “दलित”

14. सज्जन

संगत  सज्जन  के  करो , सज्जन सूपा आय
दाना – दाना  ला  रखय  ,  भूँसा   देय   उड़ाय
भूँसा   देय  उड़ाय  ,  असल   दाना  ला  बाँटय
फुन-फुन के कनकी , कोंढ़ा,गोंटी सब छाँटय
छोड़ो  तुम  कुसंग ,  बन  जाहू  अच्छा  मनखे
सज्जन  हितुवा  आय, करो संगत सज्जन के.

[ सज्जन : संगत सज्जन की करें, सज्जन सूपा की तरह होते हैं जो दानों को रख कर भूसे को उड़ा देता है. यह फुन-फुन कर (सूपे को विशेष प्रकार से फटकारने की प्रक्रिया) कनकी (चाँवल के दानों के टूटे हुये छोटे टुकड़े) कोंढ़ा (धान के छिलकों का बुरादा) और पत्थर के महीन टुकड़ों को छाँट कर उत्तम दाने देता है. बुरी संगत छोड़ो, अच्छे व्यक्ति बनो. सज्जन हितैषी होते हैं, सज्जन की संगत करें]

Wednesday, May 2, 2012


 सियानी गोठ 

जनकवि कोदूराम “दलित”

13.    हरिही गाय

दुरजन के सँग मां सुजन  ,अइसे बिगड़त जायँ
जइसे  हरिही गाय सँग  , बिगड़े कपिला गाय
बिगड़े कपिला गाय , खाय सब के चिज-बस ला
जउने पायँ , ठठायँ  अउर  टोरयँ  नस-नस ला
सुग्घर  मनखे  बनो ,  करो संगत सज्जन के
रहो  कभू  झन तुम मन संगत –मां दुरजन के.

[ बिगड़ैल गाय : दुर्जन की संगत में सज्जन भी ऐसे  बिगड़ता जाता है  जैसे कि बिगड़ैल गाय  की संगत में सीधी गाय  बिगड़ जाती है. सबके किसी भी सामान को खा लेती है .उसे जो भी पाता है, बहुत मारता है  जिससे उसकी नस-नस टूट जाती हैं. अत: अच्छे मनुष्य बनो, सज्जन की संगत करो. कभी भी दुर्जन की संगत में मत रहो.]

Tuesday, May 1, 2012

सियानी गोठ

 सियानी गोठ 

जनकवि कोदूराम “दलित”

12.    फुटहा डोंगा

डोंगा हर  फ़ुटहा रहे  ,  अउ टुटहा पतवार
वो डोंगा मा बइठ के, करो न नदिया पार
करो न नदिया पार , उहाँ पानी भर जाही
बुड़ जाही वोहर तब तुम्हला कोन बचाही ?
वो मां बइठो, रहय जउन साबुत अउ सुंदर
जी – लेवा  जमदूत आय फुटहा डोंगा हर.

[ फूटी हुई नाव :  फूटी हुई नाव  और टूटी हुई पतवार रहे तो उस नाव पर बैठ कर नदिया पार न करें.वहाँ पानी भर जायेगा, वह डूब जायेगी तब तुन्हें कौन बचायेगा ? उस नाव पर बैठें जो साबूत और सुंदर हो. फूटी हुई नाव तो जानलेवा यमदूत है.]
 भावार्थ : दुष्कर्मों से जीवन रूपी नाव में छेद हो जाते हैं, मन की कमजोर पतवार भी टूट जाती है. ऐसी नाव का डूबना तय है.ऐसे में भव-सागर पार कैसे होगा ? अत: सदैव सत्कर्म करें , मन को दृढ़ रखें तभी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है.]