Thursday, September 20, 2012

सियानी गोठ


  सियानी गोठ
 
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित”

23 .टेटका

मुँड़ी   हलावय   टेटका  ,  अपन   टेटकी   संग
जइसन देखय समय ला, तइसन बदलिन रंग
तइसन   बदलिन   रंग , बचाय अपन वो चोला
लिलय  गटागट जतका ,  किरवा पाय सबोला
भरय  पेट  तब   पान - पतेरा - मां  छिप  जावय
ककरो   जावय   जीव  , टेटका  मुड़ी  हलावय.

[ टेटका = गिरगिट (अवसरवादी) : गिरगिट अपनी मादा गिरगिट के संग सिर को हिलाता रहता है. जैसे समय को देखता है ,वैसा ही रंग बदलता है. समयानुसार रंग को बदल कर वह अपने आप को बचा लेता है. जितने भी कीड़े मिलते हैं उन सब को गटागट निगलता जाता है. जब पेट भर जाता है तब पत्तों में छिप जाता है. चाहे किसी के प्राण जाये, गिरगिट अपने सिर को हिलाता रहता है.]

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर ||

    रविकर गिरगिट एक से, दोनों बदलें रंग |
    रहे गुलाबी खिला सा, हो सफ़ेद हो दंग |
    हो सफ़ेद हो दंग, रचे रचना गड़बड़ सी |
    झड़े हरेरी सकल, तनिक जो बहस बहसी |
    कभी क्रोध से लाल, कभी पीला हो डरकर |
    बुरा है इसका हाल, रंग बदले यह रविकर ||

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    1. रविकर गिरगिट एक से, दोनों बदलें रंग |
      रहे गुलाबी खिला सा, हो सफ़ेद हो दंग |
      हो सफ़ेद हो दंग, रचे रचना गड़बड़ सी |
      झड़े हरेरी सकल, तनिक जो बहसा बहसी |
      कभी क्रोध से लाल, कभी पीला हो डरकर |
      बुरा है इसका हाल, घोर काला मन रविकर ||

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  2. जेकर जैसन समय हो,बदलो अपना ढंग
    टेटका लेय सीख लो ,कैसे बदले रंग.......

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  3. बहुत ही प्रभावी अवलोकन..

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  4. भाई साहब /बहना जी .अपने तो गिरगिट भूखे के भूखे रह्में हैं ,कोयला ,चारा ,गैस सब हजम कर जावें हैं .बढ़िया चित्रण और व्याख्या जन कवि की रचना की आपने की है .शुक्रिया .

    ram ram bhai
    बृहस्पतिवार, 20 सितम्बर 2012
    माँ के गर्भाशय का बेटियों में सफल प्रत्यारोपण

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  5. भाई साहब /बहना जी .अपने तो गिरगिट भूखे के भूखे रह्में हैं ,कोयला ,चारा ,गैस सब हजम कर जावें हैं .बढ़िया चित्रण और व्याख्या जन कवि की रचना की आपने की है .शुक्रिया .

    सियानी गोठ
    अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
    श्रीमती सपना निगम (हिंदी )

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  6. रंग बदलता, शीश हिलाता, सीधा-सादा प्राणी।
    गिरगिट से सब प्यार करों, ये ऋषियों सा ज्ञानी है।।

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  7. हमारे छत्तीसगढ़ के महान जन कवि आदरणीय स्व.कोदूराम दलित जी के दोहों
    में कबीर दास जी भाँती गहरे सन्देश छिपे होते है
    गिरगिट के रूप में अत्यंत गहरी बात कही है
    मै आदरणीय स्व. कोदूराम जी को सादर नमन
    करता हूँ
    आदरणीय अरुण जी से आग्रह है की उनकी रचना से
    हम सभी पाठकों को रूबरू कराते रहें
    हार्दिक आभार

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