सियानी गोठ
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित”
26 - राख
नष्ट करो झन राख –ला, राख काम के आय
परय खेत-मां राख हर , गजब अन्न उपजाय
गजब अन्न उपजाय , राख मां फूँको-झारो
राखे-मां कपड़ा – बरतन उज्जर कर
डारो
राख चुपरथे तन –मां, साधु,संत, जोगी मन
राख दवाई आय , राख –ला नष्ट करो झन.
[ राख – राख को नष्ट ना
करें ,यह बहुत ही उपयोगी है.
राख जब खेत में डाली जाती है तो अन्न का उत्पादन बढ़ाती है.राख से ही झाड़-फूँक की जाती
है. राख से ही कपड़ेऔर बर्तन उजले होते हैं. साधु,संत और योगी अपने तन
पर राख चुपड़ते(लगाते/मलते) हैं.राख दवा भी है, राख को नष्ट ना करें.]
राख राख ले ठीक से, रखियाना हर पात्र |
ReplyDeleteसर्वाधिक शुद्धता लिए, मिलती राखी मात्र ||
सच में राख बहुत उपयोगी है ।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ... बेहद सार्थक व सशक्त प्रस्तुति
ReplyDeleteसच कहा राख से पवित्र किसी अन्य को नहीं माना गया है
ReplyDeleteराख के बहुत फायदे है पहले दांत साफ करने से लेकर बर्तन मांजने तक हर घर में राख का ही उपयोग होता था
आज विज्ञापनों ने हमारे विचारों हमारे सोच पर अतिक्रमण कर अपना अधिपत्य जमा लिया है झूठे विज्ञापनों ने बहका कर नुक्सान ही पहुंचाया है
हमें समझ जाना चाहिए.....
बहुत बढ़िया दोहों के लिए आभार
पुराने जमाने में जब आज की आधुनिक सुविधा नही थी तब राख का उपयोग खाद,
ReplyDeleteबर्तन धोने दांत चमकाने कपड़ा साफ़ करने हाथ धोने,इत्यादि के लिये किया जाता था,किन्तु आज हम इसे भूलकर आधुनिकता का चोला पहन लिये है,,,,
सार्थक प्रस्तुति,,,
सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteइस समूहिक ब्लॉग में पधारें और हमसे जुड़ें |
काव्य का संसार
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