सियानी गोठ
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित”
24 – पंचशील
बंधन –मां जतका हवयँ, सबला मुक्त कराव
पंचशील ला मान के , विश्व-शांति अब लाव
विश्व-शांति अब लाव , सबो के भला विचारो
अस्त्र-शस्त्र,बम वम सब
ला सागर मां डारो
आ जावय बंधुत्व-भाव, जन-जन के मन मां
रहे न पावे अब
कोन्हों , मनखे बंधन मां.
[ पंचशील – जितने भी बंधन
में(बंधक) हैं, उन सबको मुक्त करायें. पंचशील को मानें और विश्व में शांति लायें. सबके
कल्याण के लिये विचार करें. अस्त्र-शस्त्र,बम इत्यादि को सागर में डाल दें. जन-जन के
मन में बंधुत्व-भाव आ जाये. अब कोई भी मनुष्य किसी के बंधन में नहीं रह पाये ]
आदरणीय स्व. कोदूराम दलित जी को सादर नमन
ReplyDeleteउनकी रचनाओं में समाज सुधार जन कल्याण के भाव समाहित रहते है
बहुत ही बढ़िया दोहे हैं
अरुण जी आभार आपने इतनी सार्थक रचना से हमें रूबरू कराया
बहुत ही सुन्दरता से व्यक्त पंचशील के सिद्धान्त..
ReplyDeleteपंचशील के समय की कुंडली |
ReplyDeleteआज के सन्दर्भ में भी सटीक ||
आभार अरुण भाई जी -