Sunday, May 22, 2011

मेरा बचपन ऐसे बीता,,,,,, (भाग-2)


प्राथमिक शाला में जाने के लिये एक बस्ता (कपड़े का सिला हुआ) उस में स्लेट कलम ,स्लेट साफ करने के लिये एक छोटी सी शीशी में पानी और छोटा सा कपड़े का टुकड़ा (अगर स्पंज का टुकड़ा मिल गया तो रईस –सी शान हो जाती थी), एक बाल-भारती की किताब , एक गणित की किताब और शायद एकाध और किताब. हल्की उम्र के लिये हल्का सा बस्ता. वेशाभूषा में सफेद कमीज और नीली पैंट. ना टाई की झंझट , ना जूते-मोजे की अनिवार्यता ,ना ही  टिफिन हुआ करता था.
हिंदी की लिपि सिखाने के लिये गुरुजी श्याम पट पर चाक से ग ,,,झ (ये वाला झ “ नहीं भ में पूँछ लगा कर बनाया जाने वाला झ जो इस ” की-बोर्ड “ में उपलब्ध नहीं है) वाला पैटर्न उपयोग में लाते थे. लेखन को बारीकी से सिखाने के लिये खड़ी डंडी , आड़ी डंडी , आधा गोला , पूरा गोला , उल्टा आधा गोला , उल्टा पूरा गोला बनाने का अभ्यास कराया जाता था. अक्षर लेखन के साथ ही साथ उच्चारण के अभ्यास कई दिनो तक कुछ इस तरह से कराये जाते थे...अनार के अ ,आम के आ......कलम के क ,खरगोश के ख.......इसी तरह से गिनती और पहाड़े का सामूहिक पाठ होता था. तब के पहाड़े इतने कंठस्थ हो गये कि आज भी हमें कैल्कुलेटर की जरूरत नहीं पड़ती.
कक्षा खत्म होने पर गुरुजी द्वारा छोड़े गये चाक के छोटे – छोटे टुकड़ो को बीन कर अपने बस्ते में रख लिया करते थे.कभी रंगीन चाक के टुकड़े मिल जाते तो लगता था मानो कोई दौलत मिल गई हो.पहली से पाँचवी की बाल-भारती की कवितायेँ अभी तक याद हैँ.
अमर घर चल . चल घर अमर.
झिलमिल झिलमिल तारे चमके , चंदा चमके चम-चम.
बड़ी भली है अम्मा मेरी ,ताजा दूध पिलाती है.मीठे-मीठे फल ले-लेकर मुझको रोज खिलाती है.
माँ खादी की चादर ले दे , मैँ गाँधी बन जाऊँ. सब मित्रोँ के बीच बैठ कर रघुपति राघव गाऊँ.
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ , होता यमुना तीरे , मैँ भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे .
हमारी शाला मेँ तिलक पुण्यतिथि , नाग पंचमी, गणेशोत्सव तथा राष्ट्रीय पर्व काफी उत्साह से मनाये जाते थे.नाग पंचमी के दिन स्लेट मेँ नाग देवता का चित्र बना कर नारियल फूल और प्रसाद लेकर शाला जाते थे. गणेशोत्सव मेँ शाला मेँ ही गणेश जी की स्थापना की जाती थी.पूरे ग्यारह दिनोँ तक रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करते थे.
क्या आज दस वर्ष की उम्र तक बच्चे इतने उन्मुक्त वातावरण मेँ बिना बोझ के अपनी प्राथमिक शिक्षा ले रहे हैँ ? क्रमश:........

6 comments:

  1. जिन्दगी अलमस्त बही जा रही है।

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  2. बहुत सुन्दर संस्मरण| धन्यवाद|

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  3. बहुत सुंदर बचपन का प्यारा संस्मरण ......

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  4. Reading you....knowing you gradually....

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  5. अरे वाह.....मजेदार हैं आपके बचपन की बातें

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  6. हमारा बचपन भी स्कूल में ऐसा ही बीता ... टाटपट्टी पर बैठ कर पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई की है ...उस वक्त पढ़ाई कभी बोझ नहीं बनी

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