Sunday, May 29, 2011

मेरा बचपन ऐसे बीता ,,,,,,,,,,(भाग – 5)

मयाभाववश कुछ विलम्ब हेतु खेद है. मुझे खुशी हुई कि आप अपने बचपन की स्मृतियों में कुछ पल के लिये लौट रहे हैं. बचपन की स्मृतियाँ चाहे प्राथमिक शाला की हों ,चाहे बचपन के खेलों की या फिर गर्मी की छुट्टियाँ बिताने की , बहुत मीठी होती हैं. भाग - 4 में कुछ खेलों के बारे में बताना शुरु किया था. मुझे लगा था कि सारे खेल संक्षेप में एक ही पोस्ट में आ जायेंगे, मगर मन में आया कि जरा विस्तार से लिखूँ, क्या पता किसी को पसंद आ जायें और वो खेल पुनर्जीवित हो उठें.
चलिये , फिकी-फिकी व्हाट कलर के बारे में जानें . इस खेल को भी हम 4 से 6 वर्ष की उम्र में खेलते थे. प्रतिभागी होते थे हम-उम्र भाई-बहन और पास-पड़ोस के बच्चे. इस खेल में दाम देने वाला बच्चा ( भाग -4 में दाम देने को परिभाषित किया गया है) किसी दीवार से पीठ टिका कर सामने खड़े बच्चों से कहता है –फिकी फिकी व्हाट कलर. सामने खड़े बच्चे एक साथ कहते हैं – कौन सा रंग ? दाम देने वाला बच्चा कुछ सोच – समझ कर किसी भी एक रंग का नाम लेता है ,जैसे कि लाल . तुरंत ही सामने खड़े बच्चों को भाग कर किसी भी लाल रंग की वस्तु को छूना होता है. लाल रंग की वस्तु को तलाश कर छू पाने के पहले यदि किसी को , दाम देने वाले बच्चे ने छू लिया तो वह आउट माना जाता है और उसे दाम देना पड़ता है. इस खेल से बच्चों में रंगों को पहचानने की शक्ति का विकास होता है. दाम देने वाला बच्चा भी सजग रहता है कि आस – पास कौन से रंग की वस्तु नहीं है ताकि उस रंग की वस्तु को खोजने में समय लगे और उसे अन्य खिलाड़ी को आउट करने के लिये ज्यादा समय मिलेगा. आनंद के साथ – साथ ज्ञान वर्धक खेल को क्या पुनर्जीवित करने में कोई बुराई है ? तो सिखाइये ना अपने और पास –पड़ोस के 4 – 6 वर्ष के बच्चों को फिकी-फिकी व्हाट कलर.
रेस – टीप का खेल – यह खेल ना जाने कब से खेला जा रहा है. वर्तमान युग में भी रेस-टीप आयु वर्ग 6 से 10 वर्ष तक के बच्चों की पहली पसंद है. संक्षेप में रेस-टीप खेलने की विधि बता ही देता हूँ. इस खेल में दाम देने वाला बच्चा आँखें बंद कर दीवार की ओर मुँह करके माथे को दीवार से लगभग चिपका कर खड़ा होता है. दोनों हथेलियों को दीवार और चेहरे से मिलाते हुये कुछ इस प्रकार से रखता है कि आजू-बाजू भी देख ना पाये. इस अवस्था में वह पूर्व निर्धारित कोई संख्या तक (50 या 100 तक) जोर-जोर से गिनती गिनता है. गिनती पूर्ण होने के पहले ही अन्य बच्चे आस –पास ही कहीं छुप जाते हैं. गिनती पूर्ण होते ही दाम देने वाला बच्चा छुपे हुये साथियों को सतर्क होकर  ढूँढना प्रारम्भ करता है . छुपा हुआ साथी ज्यों ही उसे दिखता है ,उसे कहना होता है – पहला टीप अमुक   ( पहले खोजे गये बच्चे का नाम ) इसी प्रकार से अन्य साथियों को भी ढूँढ कर क्रमश: दूसरा टीप अमुक(  खोजे गये दूसरे बच्चे का नाम )  ,तीसरा टीप अमुक ( खोजे गये तीसरे बच्चे का नाम ) कहते हुये सभी साथियों को ढूँढना होता है.यदि सभी साथियों को ढूँढने में वह सफल हो जाता है तो अगले गेम में पहला टीप वाला बच्चा दाम देता है. इस प्रक्रिया के दौरान यदि किसी भी छुपे हुये बच्चे ने दाम देने वाले बच्चे को उसका नाम लेने के पहले ही ”रेस” कह कर  छू लिया तो दाम देने वाला बच्चा पुन: दाम देता है. इस खेल से सजग रहने का अभ्यास होता है, खोजने की प्रवृत्ति विकसित होती है तथा मस्तिष्क की सक्रियता बढ्ती है. साथ ही बच्चे सभी साथियों के नाम से भली-भाँति परिचित हो जाते हैं. लुका-छुप्पी का यह खेल कैसा लगा ?..........क्रमश:.....................
-अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग
(छत्तीसगढ़)

11 comments:

  1. रंगों वाला खेल तो बहुत ही अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  2. दोनों ही खेल बचपन में बहुत खेले हैं ..अच्छी श्रृंखला

    ReplyDelete
  3. रोचक संस्मरण।
    फिकी फिकी व्हाट कलर वाला खेल हम ने शायद नहीं खेला। आपके पोस्ट से पढ़कर ही आनंद ले लिया।

    ReplyDelete
  4. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर, शानदार और रोचक संस्मरण ! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  6. बचपन की यादों में खास जगह होती है ऐसे प्यारे खेलों की....

    ReplyDelete
  7. अरुण जी,
    इस उम्र में बचपन को याद करके ,आँखों में चमक ,चहरे पे एक शरारत भरी मुस्कान आ जाती है ....
    मेरी पोस्ट पे आप का मनचाहा 'गोदान' का गीत हाजिर है |
    आप का इ-मेल नही था ,इस लिये यहाँ बताना पड़ा|
    खुश रहें |
    अशोक सलूजा |

    ReplyDelete
  8. रोचक बड़े होते है बचपन दिन!! शानदार संस्मरण!!

    ReplyDelete
  9. रोचक एवं मनमोहक संस्मरण....

    बचपन के दिन ........क्या कहने

    ReplyDelete
  10. बहत रोचक और प्रभावी संस्मरण ...आपका आभार

    ReplyDelete