Tuesday, May 10, 2011

पुराने फिल्मी गीत

हिंदी फिल्मों का प्रादुर्भाव सन ३० के दशक से हुआ है.मूक फिल्मों से सवाक फ़िल्में .श्वेत -श्याम फिल्मों से रंगीन फिल्में. अब ३ - डी फिल्में और आगे चल कर न जाने क्या -क्या विकास होगा.विकास की इस यात्रा में फ़िल्मी गीतों की सदा अहम् भूमिका रही है.पुरानी फिल्मों में २०-२५ गाने हुआ करते थे.फिर यह संख्या घट कर १०-१२ होते हुए ४-५ तक सिमट गई .गीतों की संख्या के लिए कोई निश्चित सिद्धांत तो है नहीं बस कहानी की मांग के अनुसार स्व-निर्धारित हो जाती रही है.कुछ फिल्में तो बिना किसी गीत के भी बनी हैं.बहुत सी फिल्में तो सिर्फ अच्छे गीतों के कारण ही हिट रही हैं.
      पुराने फ़िल्मी गीत आज भी सबसे ज्यादा पसंद किये जाते हैं.इस पसंदगी के पीछे बहुत से  कारण हो सकते हैं.किसी को बोल के कारण ,किसी को संगीत के कारण ,किसी को गीत के फिल्मांकन के कारण  गीत पसंद होते हैं.हर किसी का कोई न कोई पसंदीदा गायक या गायिका होती है जिसकी आवाज के जादू के कारण उसका गाया हर एक गीत उसे अच्छा लगता है.कुछ -कुछ गीत जीवन की किसी घटना से जुड़े होने के कारण बहुत ही मन भावन लगते हैं.पसंदीदा गायक/गायिका के गीत या जीवन की किसी घटना से जुड़े गीत विशेष श्रेणी में आते हैं.इनके अलावा भी बहुत से गीत बहुत ज्यादा पसंद किये जाते हैं.
      मैंने कोई सर्वेक्षण नहीं किया है फिर भी यदि सबसे अधिक पसंद किये जाने वाले गीतों का सर्वे किया जाये तो मुझे लगता है कि चालीस के दशक के अंतिम दौर से साठ के दशक के अंत  तक के गीत ही सबसे ज्यादा पसंद के दायरे में आयेंगे.चालीस के दशक के अंतिम दौर में हिंदी फिल्मों का संगीत काफी परिष्कृत हो चुका था.पचास और साठ के दशक में इसमें और भी निखार आ गया.सत्तर के दशक के प्रारंभ से ही नए-नए वाद्य यंत्रों के आ जाने से अति उत्साह में वाद्य यन्त्र ,शब्द रचना पर हावी होते गए या यूँ कहिये कि गीतों पर संगीत हावी होता गया.
      चालीस  के दशक के अंतिम दौर से साठ के दशक के अंत की अवधि में जिन गायकों को सर्वाधिक सराहा गया वे हैं मोहम्मद रफ़ी,मुकेश ,मन्ना डे,हेमंत कुमार,तलत महमूद,किशोर कुमार,महेंद्र कपूर आदि .गायिकाओं में लता मंगेशकर,आशा भोंसले,गीता दत्त ,सुरैया,शमशाद बेगम,सुमन कल्यानपुर आदि.इस दौर के संगीतकारों में नौशाद,हेमंत कुमार,शंकर जयकिशन,लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ,मदन मोहन,खैय्याम,ओ .पी.नैय्यर ,सलिल चौधरी आदि को काफी प्रसिद्धि मिली.गीतकारों में मजरूह सुल्तानपुरी,शकील बदायूनी,शैलेन्द्र,साहिर लुधियानवी ,हसरत जयपुरी,कमर जलालाबादी,आनंद बक्षी राजा मेहंदी अली खान आदि के गीत लोगों की जुबान पर चढ़ गए.
       उस दौर के गीतों पर यदि गौर करें तो कुछ विशेषता नजर आएगी.मोहम्मद रफ़ी ,लता मंगेशकर,शकील बदायूनी और नौशाद.मुकेश,लता मंगेशकर ,शैलेन्द्र,हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन,लता मंगेशकर,राजा मेहंदी अली खान और मदन मोहन.साहिर लुधियानवी और खैय्याम,आशा भोंसले और ओ.पी.नैय्यर,मुकेश और कल्याणजी आनंद जी,आनंद बक्षी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल.ये कॉम्बीनेशन कैसे बन गए ?
       मुझे तो ठीक वैसा ही लगता है जैसे दिन के समय धूप और गर्मी मिलने के लिए  पृथ्वी और सूरज का कॉम्बीनेशन , रात की शीतलता में चांदनी का सुख देने के लिए पृथ्वी और चन्द्रमा का कॉम्बीनेशन.प्रकृति ने जैसे जिव्हा  के स्वाद के लिए विविध फलों का सृजन किया.जल के लिए नदी और समुंदर बनाये,आक्सीजन और कार्बन डाइ आक्साइड के चक्र को संतुलित रखने के लिए वनों की रचनाकी .जीवनयापन के लिए विविध प्रकार की वनोपज बनाई उसी प्रकार से ऊपरवाले ने  भारत की धरा पर जन्में मनुष्यों को आनंद देने के लिए एक ही समय में ऐसे कलाकारों को भारत में अवतरित किया है .मोहम्मद रफ़ी,मुकेश,लता मंगेशकर आदि कलाकार ऊपरवाले द्वारा भेजे गए अवतार ही तो हैं.
       कल्पना कीजिये कि यदि आज के दौर में  मोहम्मद रफ़ी,लता मंगेशकर,आशा भोंसले ,तलत महमूद ,हेमंत कुमार ,नौशाद ,आदि कलाकार युवा अवस्था में होते तो क्या उस युग के संगीत की ऊँचाइयाँ  इस युग में स्थापित हो पाती ? इस सवाल का जवाब आप अपने ही दिल से ही पूछिए.मैं तो यह मानता हूँ कि वे सारे कलाकार प्रकृति  और ऊपरवाले  ने मानव मात्र के कल्याण के लिए एक ही युग में ,एक ही देश में अवतार के रूप में भेजा था जिनका संगीत सदा-सदा के लिए मानव को आनंदित करता रहेगा.........क्रमश:..........

-अरुण कुमार निगम

  आदित्य नगर,दुर्ग
   (छत्तीसगढ़)

3 comments:

  1. हमें तो पुराने गीत ही पसन्द आते हैं।

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  2. bahut badhiya samaalochna....

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  3. दिलचस्प ...रोचक प्रस्तुति..

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