Sunday, May 15, 2011

हास्य-छेड़खानी का मामला

कदम के पेड़ पर बैठी मैना
देख उसे बेसहारा
मसखरी करने की गरज से
कौवे ने पुचकारा

बोल मैना रानी

करे तू किसका इंतजार
बड़े दिनों से देख रहा मैं
दिल हुआ बड़ा बेकरार

मैना बोली काले  कौवे

है तेरी क्या मजाल
मुझे समझ में आती है
तेरी सारी चाल

यहाँ नहीं गलने वाली है

तेरी कोई दाल
तुने समझ रखा क्या मुझको
मैं हूँ तेरा माल

अरे काले कौवे जा देख

आईने में अपनी  शकल
मेरी
शकल में क्या रखा है
मुझमें भी है अकल

रोज देखता आईने में

मैं अपनी काया
आज तेरी आँखों में देखूं
दिल तुझपे आया

फिर काले कौवे ने

मैना को मारी आँख
काँव-काँव चिल्लाकर वो
जा बैठा दूजी शाख

-श्रीमती सपना निगम

 आदित्य नगर ,दुर्ग
 (छत्तीसगढ़)





2 comments:

  1. सपना जी,
    कमाल की कविता लिखी है आपने....
    इस हास्य-छेड़खानी के मामले ने खुश कर दिया.....आभार.

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