50 वीं पोस्ट :
सियानी गोठ
जनकवि कोदूराम “दलित”
10.
गोबर
गरुवा के गोबर बिनो , घुरवा में ले जाव
खूब सड़ो के खेत बर , सुग्घर खाद बनाव
सुग्घर खाद बनाव , अउर डोली में डारो
दुगुना-तिगुना सबो जिनिस मन ला उपजारो
खइता करो न येला , छेना बना - बना के
सोन समझ के सइतो नित गोबर गरुवा के.
[ गोबर – गाय के गोबर
को बीन कर घुरवा (गाँव में कचरा जमा करने का नियत स्थान) में ले जायें . इसे अच्छी तरह सड़ा
कर खेत के लिये बढ़िया खाद बनावें और डोली में (मेड़ों से घिरा अपेक्षाकृत गहरा, धान का खेत) डालें.
सब प्रकार की फसलों का उत्पादन दुगुना-तिगुना कर लें. कंडे बना बना कर इसे (गोबर
को) नष्ट न करें. प्रति दिन गाय के गोबर को
स्वर्ण समझ कर समेटें]
वाह! बहुत अच्छी जानकारी मिली.
ReplyDelete५० वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपकी टिपण्णी मन को हर्षाती है.
गाय के गोबर के कितने काम।
ReplyDeleteशुभकामनायें ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
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