सियानी गोठ
जनकवि कोदूराम “दलित”
7.
सेवा
सेवा दाई - ददा के , रोज करत तुम जाव
मानो उन कर बात ला, अउर सपूत कहाव
अउर सपूत कहाव, बनो सुत
सरवन साहीं
पाहू आसिरवाद , तुम्हार भला हो जाही
“करथयँ जे मन सेवा , ते मन पाथयँ मेवा”
यही सोच के करो , ददा - दाई के सेवा.
[ सेवा – माता पिता की सेवा तुम नित्य करते जाओ, मानो उनकी बात को
और सपूत कहाओ. श्रवण की तरह पुत्र बनो, उनका आशीर्वाद
पाओगे, तुम्हारा भला हो जायेगा. “जो करते हैं सेवा ,वे पाते हैं मेवा” –
यही सोच कर माता-पिता की सेवा करो.]
बढ़िया शिक्षाप्रद कुंडली |
ReplyDeleteसादर नमन ||
वाह! क्या बात है ..सुंदर प्रस्तुति,...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सोच।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सीख देती रचना ...
ReplyDeleteshikshaa prad post aabhar.
ReplyDeleteखूबसूरत विचार और सुन्दर सोच |
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