Wednesday, April 25, 2012

सियानी गोठ


सियानी गोठ 

जनकवि कोदूराम “दलित”

7.     सेवा

सेवा  दाई - ददा के , रोज करत तुम जाव
मानो उन कर बात ला, अउर सपूत कहाव
अउर सपूत कहाव, बनो सुत सरवन साहीं
पाहू  आसिरवाद   , तुम्हार  भला  हो जाही
“करथयँ जे मन सेवा , ते मन पाथयँ मेवा”
यही सोच  के  करो  ,  ददा - दाई  के सेवा.

[ सेवा –  माता पिता की सेवा तुम नित्य करते जाओ, मानो उनकी बात को और सपूत कहाओ. श्रवण की तरह पुत्र बनो, उनका आशीर्वाद पाओगे, तुम्हारा भला हो जायेगा. “जो करते हैं सेवा ,वे पाते हैं मेवा” – यही सोच कर माता-पिता की सेवा करो.]

7 comments:

  1. बढ़िया शिक्षाप्रद कुंडली |
    सादर नमन ||

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  2. वाह! क्या बात है ..सुंदर प्रस्तुति,...

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  3. सुंदर प्रस्तुति

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  4. बहुत बढ़िया सीख देती रचना ...

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  5. खूबसूरत विचार और सुन्दर सोच |

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