Sunday, April 22, 2012

सियानी गोठ


 
सियानी गोठ
 

जनकवि कोदूराम “दलित”

    5.खेल-कूद

भाई, संझा –बिहिनिया, खेलत-कूदत जाव
चंचल - फुर्तीला  बनो  ,  आलस दूर भगाव
आलस दूर भगाव, किंजर के खुला ठउर मां
काम-बुता नित करत रहो, घर मां, बाहर मां
रहू निरोगी,तन हर तुम्हर सबल बन जाही
सबो किसिम के खेल  रोज तुम खेलो भाई.

[खेल-कूद  : भाई ! सुबह और शाम के समय खेल-कूद करने जाओ. चंचल- फुर्तीले बन कर आलस्य को दूर भगाओ, खुली जगह में सैर करो. घर और बाहर में सक्रिय रह कर ही काम करो. ऐसा करने से तुम सदैव निरोगी रहोगे और तुम्हारा शरीर बलवान बनेगा. भाई ! तुम नित्य हर प्रकार के खेल खेला करो.]

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया ।

    शिक्षा-प्रद ।

    खेल का महत्त्व बताती हुई रचना ।

    आभार ।।

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  2. खेलकूद है बड़े काम का।

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