सियानी गोठ
जनकवि कोदूराम “दलित”
9.
गाय
लछमी साहीं समझ के, पालो घर-घर गाय
चारा खावय अपन हर, तुम्हला
दूध पियाय
तुम्हला दूध पियाय , खाद बर देवय गोबर
खींचे नाँगर अउ गाड़ी , बइला मन येकर
करथे अड़बड - ये बपुरी हर तुम्हर भलाई
पालो घर-घर गाय, समझ के
लछमी साहीं.
[ गाय – लक्ष्मी की तरह समझ कर घर-घर में गाय पालें. यह स्वयं चारा खाती है और
तुम्हें दूध पिलाती है. खाद के लिये गोबर देती है. इसके बैल हल और गाड़ी खींचते
हैं. गाय बेचारी तुम्हारी बहुत भलाई करती है. अत:
लक्ष्मी की तरह समझ कर
घर-घर में गाय पालें.]
बहुत सुंदर ... आज कल घर ही इस लायक नहीं हैं कि गाय पाली जा सके ...
ReplyDeleteगोमाता पर
ReplyDeleteबढ़िया कुंडली ।
आभार ।
गाय की महत्ता, बड़े ही प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है..
ReplyDeletebahut sundar sarthak sandesh...
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