Monday, April 30, 2012

सियानी गोठ



सियानी गोठ 

जनकवि कोदूराम “दलित”

11.    बात

बात बिगाड़य काम ला, बात बनावय काम
रीझयँ-खीजयँ बात मां, जग के लोग तमाम
जग के लोग तमाम, बात मां बस मां आवयँ
बाते  मां  अड़हा - सुजान  मन चीन्हें जावयँ
करो सम्हल के, बात, बात मां झगरा बाढ़य
बने - बुनाये  सबो  काम ला  बात  बिगाड़य.


[ बात :  बात ही काम को बिगाड़ती है, बात ही काम को बनाती है. दुनियाँ के तमाम लोग बात में ही रीझते,खीजते हैं और बात से ही बस में आते हैं. बातों से ही मूर्ख और विद्वान की पहचान होती है. अत: सम्हल कर बात करें क्योंकि बात से ही झगड़ा बढ़ता है तथा बने बनाये सभी काम को भी बात बिगाड़ देती है.]

2 comments:

  1. बात बहुत महत्वपूर्ण है...बहुत सम्भल कर बोलिये।

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